बहुत समय पहले
पुराने एक पेड़ के नीचे
जब हमने
सावन के दो झूले लगाए थे,
ठंडी हवाओं की सरसराहट के बीच
पास वाले झूले पर बैठ के
जब तुम एक छोर से
दूसरे छोर तक झूलती थी
तो पक्षियों के कलरव के साथ
तुम्हारा खुशी से चहक उठना
सारे माहौल को
एक खुशनुमा एहसास से भर देता था
तुम्हारी हँसी की खनक
चारो ओर गूँजती थी,
घने बादलों के साथ
सूरज का आँख-मिचौली करना,
पेड़ों की पत्तियों के बीच से
छन कर आती हुई
बारिश की छोटी बूँदों का
दोनों हाथ फैला के स्वागत करना
और सिर को लहराते हुए
बालों को बिखरा देना
मन को भा जाता था,
वो बादलों की गरज और
तुम्हारा मीठी आवाज़ में गुनगुना उठना
विषमता की सीमायें लाँघ जाता था,
वो पानी की बूँदें
तुम्हारे चेहरे पर
ऐसे लगती थी जैसे
शीशे की समतल सतह पर
चाँदी के छोटे छोटे घुंघरू
बिखेर दिए गये हों।
वो तुम कहती थी ना
कि एक दिन
बस यादें ही रह जाएँगी
तो अब यादें ही रह गयी हैं
ये यादें बस यादें नहीं हैं
ये यादें दोबारा जी उठने को बेकरार रहती हैं,
ये यादें कल्पनाओं के आँगन में
एक निरालस अंगड़ाई लेने को तैयार रहती हैं,
ये यादें हमेशा तुम्हारे साथ होने का
भरोसा दिलाती हैं,
और ये यादें भी आसानी से पीछा नहीं छोड़ती
मन की भंगुर दीवारों पर
बार बार चोट करके
आख़िर मन को भी विवश कर ही देती हैं,
और ये मन छोटे दर्द भी
बहुत शिद्दत से महसूस करता है,
इन यादों मे सारे रंज, सारी खुशियाँ
ढूंढ़ने पर अक्सर मिल ही जाती हैं,
इन यादों मे आकंठ डूबकर
चंद दशकों की ज़िंदगी
लम्हा लम्हा कर के गुज़री है।
जब यादों से कभी बाहर आता हूँ
तो तस्वीर का कुछ दूसरा ही पहलू दिखता है,
झूले के इर्द गिर्द कुछ भी तो नहीं बदला
बस तुम यहाँ नहीं हो
मन यहाँ नहीं है,
आज उन्हीं काले बादलों के बीच से आने वाली
सूरज की किरणें
आँखों को बेधती हुई सी लगती हैं,
ठंडी हवाओं से ठिठुरन सी होती है
और उन्हीं पत्तियों की सरसराहट से
एक पल के लिए मन सहम सा जाता है,
चारों ओर फैले हुए सन्नाटे के बीच
डालों पे बैठे हुए पक्षियों का कलरव
कर्णकटु शोर सा लगता है,
वो बारिश की बूँदें भी
अब अच्छी नहीं लगती हैं,
कभी आ कर देखना
वो पक्षी, वो पत्तियाँ,
वो पुरवा बयार
मेरे साथ तुम्हारी बाट जोहते हैं।
कुछ भी तो नहीं बदला है
बस तुम्हारी अनुपस्थिति में
पास वाला झूला
अब खाली पड़ा है।
पुराने एक पेड़ के नीचे
जब हमने
सावन के दो झूले लगाए थे,
ठंडी हवाओं की सरसराहट के बीच
पास वाले झूले पर बैठ के
जब तुम एक छोर से
दूसरे छोर तक झूलती थी
तो पक्षियों के कलरव के साथ
तुम्हारा खुशी से चहक उठना
सारे माहौल को
एक खुशनुमा एहसास से भर देता था
तुम्हारी हँसी की खनक
चारो ओर गूँजती थी,
घने बादलों के साथ
सूरज का आँख-मिचौली करना,
पेड़ों की पत्तियों के बीच से
छन कर आती हुई
बारिश की छोटी बूँदों का
दोनों हाथ फैला के स्वागत करना
और सिर को लहराते हुए
बालों को बिखरा देना
मन को भा जाता था,
वो बादलों की गरज और
तुम्हारा मीठी आवाज़ में गुनगुना उठना
विषमता की सीमायें लाँघ जाता था,
वो पानी की बूँदें
तुम्हारे चेहरे पर
ऐसे लगती थी जैसे
शीशे की समतल सतह पर
चाँदी के छोटे छोटे घुंघरू
बिखेर दिए गये हों।
वो तुम कहती थी ना
कि एक दिन
बस यादें ही रह जाएँगी
तो अब यादें ही रह गयी हैं
ये यादें बस यादें नहीं हैं
ये यादें दोबारा जी उठने को बेकरार रहती हैं,
ये यादें कल्पनाओं के आँगन में
एक निरालस अंगड़ाई लेने को तैयार रहती हैं,
ये यादें हमेशा तुम्हारे साथ होने का
भरोसा दिलाती हैं,
और ये यादें भी आसानी से पीछा नहीं छोड़ती
मन की भंगुर दीवारों पर
बार बार चोट करके
आख़िर मन को भी विवश कर ही देती हैं,
और ये मन छोटे दर्द भी
बहुत शिद्दत से महसूस करता है,
इन यादों मे सारे रंज, सारी खुशियाँ
ढूंढ़ने पर अक्सर मिल ही जाती हैं,
इन यादों मे आकंठ डूबकर
चंद दशकों की ज़िंदगी
लम्हा लम्हा कर के गुज़री है।
जब यादों से कभी बाहर आता हूँ
तो तस्वीर का कुछ दूसरा ही पहलू दिखता है,
झूले के इर्द गिर्द कुछ भी तो नहीं बदला
बस तुम यहाँ नहीं हो
मन यहाँ नहीं है,
आज उन्हीं काले बादलों के बीच से आने वाली
सूरज की किरणें
आँखों को बेधती हुई सी लगती हैं,
ठंडी हवाओं से ठिठुरन सी होती है
और उन्हीं पत्तियों की सरसराहट से
एक पल के लिए मन सहम सा जाता है,
चारों ओर फैले हुए सन्नाटे के बीच
डालों पे बैठे हुए पक्षियों का कलरव
कर्णकटु शोर सा लगता है,
वो बारिश की बूँदें भी
अब अच्छी नहीं लगती हैं,
कभी आ कर देखना
वो पक्षी, वो पत्तियाँ,
वो पुरवा बयार
मेरे साथ तुम्हारी बाट जोहते हैं।
कुछ भी तो नहीं बदला है
बस तुम्हारी अनुपस्थिति में
पास वाला झूला
अब खाली पड़ा है।
I read your book review of India after Gandhi by ram chandra guha.after a nice review here is a good poetry. Well written.
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