इश्क़-बयानी बदनाम कर देगी उनको
फिर भी जो सज़ा होगी मुझे मंज़ूर है
नज़र मिलाने से वो भी तो डरते हैं
उधर भी कुछ ना कुछ तो ज़रूर है
महफ़िल में जो आज चर्चा-ए-आम है
इसमें भी कहीं न कहीं मेरा ही कसूर है
आते आते उनको आ ही जाता है ख़याल
उनकी चितवन में दिखी शिद्दत ज़रूर है
हर किसी से पूछी होगी उन्होंने मेरी दास्ताँ
उधर अब बेसब्री भी है, दिल भी मज़बूर है
मुझे आदत नहीं रोज़ दीदार-ए-आफताब की
सामने दाखिल होता रोज़ दरिया-ए-नूर है
ज़ुल्फ-ए-यार में उलझती हैं नज़रें मेरी
तह-ए-ज़ुल्फ मख़मूर चश्म-ए-हूर है
फिर भी जो सज़ा होगी मुझे मंज़ूर है
नज़र मिलाने से वो भी तो डरते हैं
उधर भी कुछ ना कुछ तो ज़रूर है
महफ़िल में जो आज चर्चा-ए-आम है
इसमें भी कहीं न कहीं मेरा ही कसूर है
आते आते उनको आ ही जाता है ख़याल
उनकी चितवन में दिखी शिद्दत ज़रूर है
हर किसी से पूछी होगी उन्होंने मेरी दास्ताँ
उधर अब बेसब्री भी है, दिल भी मज़बूर है
मुझे आदत नहीं रोज़ दीदार-ए-आफताब की
सामने दाखिल होता रोज़ दरिया-ए-नूर है
ज़ुल्फ-ए-यार में उलझती हैं नज़रें मेरी
तह-ए-ज़ुल्फ मख़मूर चश्म-ए-हूर है