Pages

Jan 22, 2015

चंद लम्हों की ज़िन्दगी

टूटे हुए तारों से भी माँगते हुए देखा है लोगों को अक्सर
जो खुद ज़मीं तलाश रहे हैं उन्होंने किसी को क्या दिया।

पीले पत्ते ये जो ज़मीं पर बिखरे हैं तो क्यूँ दुखी हो देखकर
नातवाँ को कौन चाहता है फिर दरख़्तों ने क्या नया किया।

मुद्दतों बाद जब बादल बरसेंगे भी कल तो क्या हासिल
जब मुसाफिर ने तिश्नगी के साथ ही अलविदा कह दिया। 

जन्नत के झाँसे दिखाये आतिश-ए-दोज़ख से डराया भी
चलने की कहाँ वाइज़ की ये राहें दिल जो कहे वो किया। 

शान-ए-चमन बनूँ गुल की बस यही आरज़ू थी यायावर
हवा का झोंका आया गुल को शाख से जुदा कर दिया।

नातवाँ:weak; दरख़्त:tree; तिश्नगी:thirst; आतिश-ए-दोज़ख:fire of hell; वाइज़:preacher

No comments:

Post a Comment