दूज की रात में, तारों की रौशनी में,
वो एक दूसरे को देखते हुए चेहरों के पीछे
कोई अपना ढूँढ रहे थे,
कुछ वर्षों का छोटा सा समय
हहराता हुआ जाने कब निकल गया था,
ऐसे ही किसी रात में
दोनों तारों की छत्रछाया में एक अरसा पहले मिले थे,
जब उसने कहा था कि
अजनबीयत का भी अपना ही मज़ा होता है
तो दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े थे,
फिर दोनों ने
समस्त दिशाओं को साक्षी मानकर
सागर में आखिरी बूँद पानी रहने तक
ज़िन्दगी की आखिरी साँस तक
नदियों के बहते रहने तक
सूरज-चाँद के उगते रहने तक,
एक दूसरे के साथ रहने की मन ही मन कसम खाई थी
वो भी एक भी लफ्ज़ कहे बिना,
प्यार की भाषा भी बड़ी अजीब होती है,
और परिस्थितियाँ भी सोच को कितना बदल देती हैं,
जो बादल उस दिन तारों के साथ आंख-मिचौली कर रहे थे,
वही आज तारों को क़ैद करने की मंशा लेकर आये थे,
वही तारे तो उस दिन प्यार की परिभाषा को
पुनः परिभाषित करने पर तुले हुए थे
वही तारे आज आँखों में चुभ से रहे थे,
दोनों ने सोचा कि अमावस्या की रात में
शायद सवालों भरी नज़रों का सामना नहीं करना पड़ता,
इतने सालों में वो क़सम
गिरते-पड़ते, रगड़ खाते
ज़िन्दगी की तमाम घटनाओं के बीच
किसी कोने में तन्हा सी पड़े-पड़े
आज दम तोड़ रही थी,
उन दोनों ने और बहुत सी कसमें याद की
जो आज बदलाव की आंधी में
ना जाने कहाँ भटक गयीं थी,
जिन्हें ढूंढकर लाना भी अवांछित सवालों को बुलावा देना था,
दोनों ने सोचा कि इस संसार में कुछ भी स्थायी कहाँ रहता है
नदिया भी सागर से मिलते मिलते शिथिल हो जाती हैं,
सूरज-चाँद भी समय देखकर ही आते हैं,
महासागर भी एक दिन हिमालय बन सकता है,
तो उन्होंने नतीजा निकाला कि उनकी कसम भी कोई अपवाद नहीं थी,
दोनों ने फिर एक दूसरे की आँखों में देखा और फिर से बिना कुछ कहे
चल पड़े,
इस बार अलग अलग राहों पर,
नयी ज़िन्दगी चलने
किसी और क़सम की खातिर
दोनों ने जाते जाते सोचा कि
अज़नबीयत का भी अपना ही मज़ा होता है,
ज़िन्दगी चलती रहती है,
किसी न किसी के साथ,
ज़िन्दगी का सहारा बस ज़िन्दगी होती है |
वो एक दूसरे को देखते हुए चेहरों के पीछे
कोई अपना ढूँढ रहे थे,
कुछ वर्षों का छोटा सा समय
हहराता हुआ जाने कब निकल गया था,
ऐसे ही किसी रात में
दोनों तारों की छत्रछाया में एक अरसा पहले मिले थे,
जब उसने कहा था कि
अजनबीयत का भी अपना ही मज़ा होता है
तो दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े थे,
फिर दोनों ने
समस्त दिशाओं को साक्षी मानकर
सागर में आखिरी बूँद पानी रहने तक
ज़िन्दगी की आखिरी साँस तक
नदियों के बहते रहने तक
सूरज-चाँद के उगते रहने तक,
एक दूसरे के साथ रहने की मन ही मन कसम खाई थी
वो भी एक भी लफ्ज़ कहे बिना,
प्यार की भाषा भी बड़ी अजीब होती है,
और परिस्थितियाँ भी सोच को कितना बदल देती हैं,
जो बादल उस दिन तारों के साथ आंख-मिचौली कर रहे थे,
वही आज तारों को क़ैद करने की मंशा लेकर आये थे,
वही तारे तो उस दिन प्यार की परिभाषा को
पुनः परिभाषित करने पर तुले हुए थे
वही तारे आज आँखों में चुभ से रहे थे,
दोनों ने सोचा कि अमावस्या की रात में
शायद सवालों भरी नज़रों का सामना नहीं करना पड़ता,
इतने सालों में वो क़सम
गिरते-पड़ते, रगड़ खाते
ज़िन्दगी की तमाम घटनाओं के बीच
किसी कोने में तन्हा सी पड़े-पड़े
आज दम तोड़ रही थी,
उन दोनों ने और बहुत सी कसमें याद की
जो आज बदलाव की आंधी में
ना जाने कहाँ भटक गयीं थी,
जिन्हें ढूंढकर लाना भी अवांछित सवालों को बुलावा देना था,
दोनों ने सोचा कि इस संसार में कुछ भी स्थायी कहाँ रहता है
नदिया भी सागर से मिलते मिलते शिथिल हो जाती हैं,
सूरज-चाँद भी समय देखकर ही आते हैं,
महासागर भी एक दिन हिमालय बन सकता है,
तो उन्होंने नतीजा निकाला कि उनकी कसम भी कोई अपवाद नहीं थी,
दोनों ने फिर एक दूसरे की आँखों में देखा और फिर से बिना कुछ कहे
चल पड़े,
इस बार अलग अलग राहों पर,
नयी ज़िन्दगी चलने
किसी और क़सम की खातिर
दोनों ने जाते जाते सोचा कि
अज़नबीयत का भी अपना ही मज़ा होता है,
ज़िन्दगी चलती रहती है,
किसी न किसी के साथ,
ज़िन्दगी का सहारा बस ज़िन्दगी होती है |