कल रात में
बारिश की बूँदों को
चिर-परिचित ध्वनि के साथ
यूँ ही थिरकते देखा
तेज गति से आती हुई बूँद
अपनी तुलना में
किसी विशाल जलराशि से मिलकर
चौंक उठती थी
शायद उसमें भी
विशालता को पाने की
कुछ ज्यादा ही जल्दी थी।
यह भी देखा
कि ताल, झील, नदियाँ
सब धीरज धारण कर
जैसे जिम्मेदारियों से दबे हुये
इन नयी बूँदों की प्रतीक्षा में थे
यह भी देखा
कि ये बूँदें
जलराशि में
इतना घुलमिल गई थी
कि उनको पहचान पाना भी
अब लगभग असम्भव था।
मैंने अपने चारों ओर की दुनिया देखी
तो मुझे बूँदों का बर्ताव
कुछ जाना पहचाना सा लगा
और यह ख्याल आया
कि शायद
विशालता के लिये
स्वयं को खो देना
पहली शर्त है।
बारिश की बूँदों को
चिर-परिचित ध्वनि के साथ
यूँ ही थिरकते देखा
तेज गति से आती हुई बूँद
अपनी तुलना में
किसी विशाल जलराशि से मिलकर
चौंक उठती थी
शायद उसमें भी
विशालता को पाने की
कुछ ज्यादा ही जल्दी थी।
यह भी देखा
कि ताल, झील, नदियाँ
सब धीरज धारण कर
जैसे जिम्मेदारियों से दबे हुये
इन नयी बूँदों की प्रतीक्षा में थे
यह भी देखा
कि ये बूँदें
जलराशि में
इतना घुलमिल गई थी
कि उनको पहचान पाना भी
अब लगभग असम्भव था।
मैंने अपने चारों ओर की दुनिया देखी
तो मुझे बूँदों का बर्ताव
कुछ जाना पहचाना सा लगा
और यह ख्याल आया
कि शायद
विशालता के लिये
स्वयं को खो देना
पहली शर्त है।