Pages

May 27, 2016

ख़ुर्शीद

जब किसी दिन
तुम चाँद पर लिखी गयी नज़्मों के
सफ़्हे पर सफ़्हे खोलना
तो देखना
कि क़दीम रातों में
चाँद की जुम्बिश पर
किसी नज़्म की तख़लीक़ में
तुमने कितनी सतरें बर्बाद की थीं
और दावा किया था
कि जब तक चाँद ज़िंदा रहेगा
तुम्हारी नज़्म ज़िंदा रहेगी
और देखना
कि चाँद ने
किन्हीं क़दीम किस्सों में
कोई मिसाल दबा रखी थी
कि तुम्हारा जमाल कुछ फ़ीका सा हो गया था
तुमने बादलों में छिपा दिया था उसे
और देखना
कि किसी तम्सील में चंद अशआर पढ़ते हुये
जब तुम्हारा दर्द तुमसे बड़ा हो गया था
और चाँद ने किसी दूर की हवा को
तुम्हारे ज़ुल्फ़ों से उलझाकर
तुम्हें तसल्ली दी थी
और यह भी देखना
कि माज़ी, हाल, मुस्तक़बिल में
चाँद बस चाँद रहेगा
तुम अपनी हालत से उसे जोड़कर देखोगे
फिर भी
चाँद बस चाँद रहेगा

और अब चाँद भी देखता होगा
कि तुम पर लिखे हुये
सारे हर्फ़ जाया हो गये हैं
चाँद अपने दाग लेकर भी
अज़ाब में है तब भी
मेरी छत पर मुझसे मिलने आता है
तुम चाँद की चाँदनी में चमक कर
खुद को ख़ुर्शीद समझ बैठे।


सफ्हे - page; क़दीम - ancient; जुम्बिश - movement;
तख़लीक़ - creation; सतर - line; जमाल - beauty;
तमसील - example; अशआर - couplet;
माज़ी, हाल, मुस्तक़बिल - past, present, future;
हर्फ़ - letter; अज़ाब - pain; ख़ुर्शीद - sun

No comments:

Post a Comment