Pages

Jun 22, 2016

आदमी और लाइटहाउस

जैसे तेज हवा में झूमते फलदार वृक्षों के बीच
सैकड़ों वर्षों से संचित अनुभवों में डूबा हुआ
ज़मीन से बहुत तरह से जुड़ा हुआ एक वटवृक्ष,
जैसे कारण की तलाश में
स्थापित विचारधारा को नकारता चलता हुआ
समाज से अलग-थलग पड़ गया एक दार्शनिक,
जैसे बगीचे से तोड़ लाया गया
किसी व्यक्ति विशेष की शोभा बढ़ा देने के लिये
खुश हो या दुःखी हो, इसमें भ्रमित एक अकेला फूल,
और जैसे किसी निर्जन समुद्र-तट पर
छोटी-बड़ी लहरों से घिरा हुआ
जल और थल दोनों को देख चुका एक लाइटहाउस।

जैसे इश्क़ में चोट खाये आशिक़ की आँखों में
उम्मीद की तरह बस गया
तारों के बीच अकेला दाग़दार चौदहवीं का चाँद,
जैसे कभी कहानियों में पढ़े
लेकिन गमलों में कभी न देखे हुये
नीले फूलों को जंगल में तलाशता हुआ एक घुमक्कड़,
जैसे पहाड़ के दबाव भरे जीवन को छोड़कर
आसपास की चीजों का कौतूहल जागृत करती हुई
सोते से निकलती हुई एक अकेली धार,
और जैसे सैलानियों की भीड़ में
उनके आकर्षण का केंद्र बना हुआ
चट्टान पर खड़ा हुआ एक लाइटहाउस।

जैसे एक पन्ने के आखिर तक पहुँचकर
अंतिम वाक्य के अर्थ को पूरा करने के लिये
पन्ना पलटने को बेताब
मगर कहानी में नये मोड़ से अंजान एक पाठक,
जैसे शीशे की सतह पर
अपने शरीर से दुगुना वजन लेकर चढ़ती हुई
बार-बार गिरती हुई मगर फिर प्रयास करती हुई
अपनी क्षमता से अंजान, झुण्ड से खो गयी एक चींटी,
जैसे सूनेपन के शाप से परास्त
चमकदार गाड़ियों को देखता हुआ
मगर हाईवे की भागमभाग से अंजान उसमें मिलता हुआ एक गलियारा,
और जैसे राह भटके जहाजों को
घने अंधेरी रात में राह दिखाता हुआ
लेकिन समुद्र की गहराई से, लहरों के पार की रोमांचक दुनिया से अंजान
एक लाइटहाउस।

No comments:

Post a Comment