धीरे-धीरे सरकती हुई
छज्जे पर से नव पथ को ताकती हुई
एक नन्हीं बूँद यूँ ही
अपनी अपार सम्भावनाओं के बारे में सोचने लगी।
बूँद ने सोचा
कि खिड़की तक पहुँचकर
बल्ब की रोशनी में जगमगाकर
कोई दिव्य पुञ्ज सा बनकर
इन्द्रधनुषी रंगों में
अपनी छटा बिखेर देगी
जिसमें दीख जायेगी
छवि जल-थल-नभ की।
ताल-तलैय्या से लेकर
हाहाकार मचाते महानद तक
अनन्त की सीमा लाँघते अपार सिंधु बनने को आतुर
शक्ति-संचिता बूँद ने
रोमांच से बंद कर ली आँखें अपनी
झूम गयी वह मारी विस्मय की।
यूँ सोच लिये क्षण भर में
अनगिनत उद्द्येश्य
उस तथाकथित आत्म-जागृत बूँद ने
यह निश्चय कर लिया
वह कुछ कर जायेगी
जिससे आ सके
सौगात प्राणि-मात्र के जीवन में खुशियों की।

यह सब सोच ही रही थी अभी
कि बूँद
छज्जे से सरकी
और फ़र्श पर आन गिरी
कहीं खो सी गई वह
फ़र्श पर नाचती हुई अनगिनत अन्य बूँदों में
अस्तित्वविहीन;
विराट में विलीन;
नादान बूँद बना रही थी
क्षणमात्र के अस्तित्व के लिये
इतनी सारी योजनायें।


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