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Jun 20, 2016

सपने और हक़ीक़त

तारे गिनते हुये वो नन्हीं आँखें
जिन्हें बता दिया गया है
कि आसमान से आती हैं परियाँ
और सच कर देती हैं सपने
जिनमें ये बात पैठ कर गई है
कि सुपरहीरो ख़त्म कर सकते हैं
दुनिया की तमाम बुराइयाँ
जिनमें सपने हैं पक्षियों की तरह खुलकर उड़ने के
पतंग की तरह बंधकर नहीं
मैंने उनको बताये बिना चुरा लिया
वो सपना उसकी आँखों से।

धान के खेत में बैठकर
हल्के काले बादलों को देखकर
हवा की दिशा का अंदाज़ लगाते हुये
घाघ की कहावतों से मौसम का मतलब निकालते हुये
एक किसान ने इस साल
अपनी बेटी के हाथ पीले करने का सपना देखा
जिससे किसी ज्योतिषी ने बता दिया था
कि खेत की पूजा करवा लो, दान-दक्षिणा दो
इस साल फसल अच्छी होगी
मैंने वो सपना बो दिया था
भविष्य की उपजाऊ मिटटी में।

रिश्तेदारों से मुँह चुराते हुये
एक बाप ने कभी नहीं सोचा था
कि उसकी परवरिश में कोई कसर हो सकती है
जिसकी बेटी ने प्यार कर लिया था
और उसे अंजाम तक पहुँचाने का फैसला कर लिया था
उसने उन वर्षों से समेटे सपनों को
घर से बाहर निकाल दिया था
और दरवाज़ा हमेशा के लिए बंद कर लिया था
मैं उन सारे सपनों को बीन लाया था।

मैंने इन चुराये हुये,
बोए हुये,
बीने हुये सपनों को
अपनी डायरी में नोट कर लिया था
कभी किसी कहानी में, किसी कविता में टांक दूँगा
ताकि कोई बनावट की तपिश में तपते हुये कल आये
तो उसे दो पल की ठंडक मिले
लोग पूंछेंगे कि ऐसे असल सपने कहाँ मिलते हैं
मैं कहूँगा,
कि असल सपने तो बस
उपन्यासों, कविताओं, लोरियों में मिलते हैं
हक़ीक़त मिलती है तो बस अख़बारों में, उपदेशों में;
या शायद वहाँ भी नहीं।

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