उम्मीदों के उजाले पर समय के मेघ घिर आये
भोर को ढोते हुए कल रात ने बहुत आँसू बहाये।
जब तलक रात थी तारों से मेरी गुफ़्तगू रही, फिर वो
खो गये रात को लेकर जब सूरज के झाँसे में आये।
साँझ से भी मेरी मुलाकात हुई अमलतास के नीचे
वहॉं से लौटा सूर्यास्त की लालिमा माथे पर लगाये।
बिखरे हुए लम्हों ने यादों की जागीर खड़ी कर दी
अमावस और मैं एक दूसरे की हालत पर मुस्कराये।
सर्द हवा ने भी मेरे घर में घुसने की बहुत कोशिश की
खाली जाम और खाली मन उसे इतना क्यों लुभाये।
तब से ओस की बूँदों से मेरी जम के दोस्ती हो गई
जब से उन्होंने देखा चाँद को रात भर टकटकी लगाये।
मैं आहुति देता रहा ज़िन्दगी के यज्ञ में हर एक क्षण
जितने भी विद्रोह थे बस मेरी कलम को याद आये।
भोर को ढोते हुए कल रात ने बहुत आँसू बहाये।
जब तलक रात थी तारों से मेरी गुफ़्तगू रही, फिर वो
खो गये रात को लेकर जब सूरज के झाँसे में आये।
साँझ से भी मेरी मुलाकात हुई अमलतास के नीचे
वहॉं से लौटा सूर्यास्त की लालिमा माथे पर लगाये।
बिखरे हुए लम्हों ने यादों की जागीर खड़ी कर दी
अमावस और मैं एक दूसरे की हालत पर मुस्कराये।
सर्द हवा ने भी मेरे घर में घुसने की बहुत कोशिश की
खाली जाम और खाली मन उसे इतना क्यों लुभाये।
तब से ओस की बूँदों से मेरी जम के दोस्ती हो गई
जब से उन्होंने देखा चाँद को रात भर टकटकी लगाये।
मैं आहुति देता रहा ज़िन्दगी के यज्ञ में हर एक क्षण
जितने भी विद्रोह थे बस मेरी कलम को याद आये।