कभी मुख्यधारा में शामिल होने की क़वायद बन जानी है
हो न हो मेरे अस्तित्व की यह समस्या अब बहुत पुरानी है।

एहसास की बातों के अलावा भी कुछ है क्या ये दुनिया
क्या मेरे दीद की दुनिया बस एक काल्पनिक कहानी है।

उम्र भर जिये बस मौत के बाद की दुनिया की तैयारी में
सुनी हुई बातों का यकीन करना वाइज़ की नादानी है।

उग्र धाराओं के इस दौर में मध्यमार्गी को तवज्ज़ो कहाँ
लहू छूकर उसने मेरा कहा कि ये न आग है न पानी है।

चोट खाकर आई थी दरिया राह के हर एक पत्थर से
कुछ बड़े मक़सद से चली थी तभी अब तक रवानी है।

वो चल चुका था घर से खुद को खोज निकालने को
ढूँढ़ता है हर शख़्स में ख़ुद को यही उसकी परेशानी है।

इत्तेफ़ाक़न उसको जीने का सहारा मिल भी जाये अगर
वो क्या छोड़ देगा उसको जो माज़ी की पशेमानी है।

माज़ी - past; पशेमानी - repent.


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