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Aug 22, 2016

स्पीति - 1 / तुम अमर, मैं नश्वर

मैं नश्वरता का वरदान लिए आता हूँ
तुम्हारे साथ के इन पलों के लिए
जो कहे न जा सकें उन क्षणों के सान्निध्य के लिए
हर एक जीवन में मैं एक नया जन्म लेता हूँ
तुम अमरत्व का अभिशाप लिए
कितनी आपदायें, कितने परिवर्तन देख चुकी
कितनी दुनिया के कितने दृश्यों को देख चुकी
स्वीकार चुकी, नकार चुकी
स्मृतियों के अनंत भार को कब तक ढोती रहोगी, स्पीति?

इस मरुस्थल के सन्नाटे की लयबद्धता को
घाटी जैसी बाँसुरी में संगीत करती, दिशा भूल चुकी हवाओं को
किसी सुदूर गाँव से आती हुई ढोल की आवाज को
कितनी धुनों को अपनी लहरों में समाहित कर
भविष्य के लिए बचा लिया है,
कितने सूर्योदयों की लाली के
अस्ताचल सूर्य में लौटते हुए कितने चरवाहों के
वह रात्रि के अक्ष्क्षुण आकाश के कितने तारों के
दृश्य तुम्हें अनायास ही याद हो चुके हैं
पर समय तो सब विस्मृत कर देता है
क्या तुम काल को पराजित कर सकोगी, स्पीति?

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