तुमने कभी रेलगाड़ी से बाहर
पानी फेंककर देखा है, अदीब?
कुछ दूर तो वह एक रेखा में धार बनकर चली जाती है
फिर अचानक 90 अंश के कोण पर
हिंसात्मक रूप से छितराकर
बहुत तेजी से ओझल हो जाती है।
तुमने वहाँ दर्शन देखने की कोशिश नहीं की?
कै़द करके रखी हुई किसी राशि की अकुलाहट,
या यूँ ही विभिन्न आयामों को आत्मसात कर लेने की उद्विग्नता,
या अनेक घटक इकाइयों में प्रतियोगिता,
या फिर सार्थकता की तलाश में निरंतर प्रयासरत कुछ बूँदें।
तुमने दर्शन वहाँ नहीं देखा
जहाँ उसे देख पाना बहुत आसान था,
तुमने उसे देखा मन और पदार्थ के विभाजन में
नियंत्रित और नियंता की परिभाषाओं में
सत्ता के प्रतिष्ठानों की बनावट में
भूत और भविष्य के सम्बंधों के निर्धारण में।
तो पानी की धार के व्यवहार को
एंट्रोपी बढ़ाने की एक सरल परिभाषा में गढ़कर
आसानी से बातों में उड़ा देना
उचित ही है न, अदीब?