एक दिन
मानव निर्मित कोई धूल
अपने भयानक हाथों से
शाम के सूरज को लील लेगी
ये नदियाँ दूर कहीं
बाँध बनाकर रोक दी जायेंगी
ये महल अट्टालिकायें
ज़मींदोज़ हुए पड़े रहेंगे
ये पूरब ये पश्चिम
जैसे हमें ज्ञात हैं
वैसे नहीं रह जायेंगे
ये ज्ञान ये विज्ञान
ये मानव प्रजाति की उपलब्धियाँ
किंवदंती बनकर रह जायेंगी
एक दिन
सार्थक सारी बातें
निरर्थक साबित कर दी जायेंगी।
तब दूर किसी घने जंगल में
एक वन-मानुष
दो पत्थर रगड़कर
आग पैदा करेगा
और सृष्टि का पहिया
एक बार फिर से घूम उठेगा।
No comments:
Post a Comment