फिर लगा दी जाती हैं
सदियों से गैर-जाँची, गैर-परखी चली आयी
परम्पराओं की बेड़ियाँ
किन्हीं पैरों में;
वही ढेर सारे नुस्खे
जिनको अपनाकर
आदमी जीवन से सन्तुलन बनाकर रह सकता है
और समय के मंथन में मिले
एक विशेष युग को
उन्हीं बेड़ियों को सौंप देने पर ही
अस्तित्व में रहा जा सकता है,
और यही एक मुद्दे की बात थी
बाकी तो बेड़ियाँ कौन सा मुद्दा छोड़ती हैं
यह सहज अनुभव से जाना जा सकता है।
और इन बेड़ियों से
छूट जाना असम्भव ही है,
बस आदतबाज़ बनकर निकला जा सकता है।
सदियों से गैर-जाँची, गैर-परखी चली आयी
परम्पराओं की बेड़ियाँ
किन्हीं पैरों में;
वही ढेर सारे नुस्खे
जिनको अपनाकर
आदमी जीवन से सन्तुलन बनाकर रह सकता है
और समय के मंथन में मिले
एक विशेष युग को
उन्हीं बेड़ियों को सौंप देने पर ही
अस्तित्व में रहा जा सकता है,
और यही एक मुद्दे की बात थी
बाकी तो बेड़ियाँ कौन सा मुद्दा छोड़ती हैं
यह सहज अनुभव से जाना जा सकता है।
और इन बेड़ियों से
छूट जाना असम्भव ही है,
बस आदतबाज़ बनकर निकला जा सकता है।
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