और ये कहा जायेगा फिर
कि चाँद और सूरज
जो कि उतने ही स्थायी हैं
जितना कि समय की परिकल्पना,
तो उन पर भी लोग
इतना स्नेह क्यों रखते हैं?
पर हम चाँद, सूरज और तारों को
स्थायी की तरह से देखते ही कहाँ हैं,
छवि दे देते हैं उन्हें
अपने सीमित अनुभव से उठाकर
और फिर उन छवियों से बहुत लगाव रखते हैं
और प्रकृति के इन पिंडों को
छवियों के मोहपाश में बाँधकर
हम अपनी बनाई कहानियों को
समय की यात्रा में धकेल देते हैं,
लेकिन सहस्रों साल में
इन कहानियों के मायने बदल जाते हैं।

समय के रूप अनेक हैं
समय के इस पार में और उस पार में
मायने बहुत अलग-अलग हैं।


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