दरवाज़ा खुला छोड़ गया है पीछे
बरसों से फड़फड़ाता हुआ एक पंछी
पिंजरा तोड़कर निकल गया है
कहीं किसी पेड़ पर बैठकर
बहेलिये का इंतज़ार करता होगा
उड़ नहीं पायेगा वो
पिंजड़े के पंछी उड़ते नहीं हैं
फिर से किसी जाल में फंस जायेगा
मगर लौटकर नहीं आयेगा।
तुम खूब उनकी आवाज़ें निकालकर उनको बुलाओ
उनके लिये दाना डालो
वो नहीं आयेंगे
पिंजरे के पंछी सिर्फ तुम्हारे नहीं होते।