एक सड़क थी
जो दर्रे के ऊपर से गुजरती थी
एक बस वहाँ से गुजरी
तेज चलती हुई हवा का एक झोंका
उस बस में आकर बैठ गया
और वह रास्ते के हर एक शख्स से
गर्मजोशी से मिलता रहा
कुछ घण्टों की कठिन यात्रा के बाद
वह झोंका बस से उतरा
और झील के पानी पर तैरने लगा
और चिढ़ाने लगा सूरज की किरणों को,
फिर वह झोंका पहाड़ पर चढ़ गया
और वहाँ से गिराने लगा
रेत के टुकड़ों को,
वह झोंका ज़मीन पर अवतरित हुआ
नदी में बहते हुये
पत्थरों से टकराने लगा
और वह घाटी की आबो-हवा में व्याप्त हो गया
जिस से हर एक क्षण निमंत्रण सा लगने लगा था
और उसने वातावरण को एक सधे उन्माद से भर दिया
जिसे मैंने हर एक प्राण में
अक्षुण्ण पाया था।
मैं उसी सड़क से लौटा
हवा का झोंका अपने साथ रख लाया था
आज भी कभी-कभी
हवा का वह झोंका मेरे अंदर चलने लगता है
मैं पंछी बनकर उड़ने लगता हूँ
विहंगम दृश्य मेरे सामने नाचने लगते हैं
मैं अपने आप को
किसी बौद्ध मठ में लाल कालीन पर बैठा हुआ
ध्यानरत देख पाता हूँ।