वो लौ बहुत धुँआ छोड़ती है
और शीशे पर पुती कालिख के कारण
पूरी तरह बाहर दिख भी नहीं पाती है
अहाते में एक खूँटी पर टँगी है लालटेन
तेज हवा चल रही है
संघर्षरत लौ भभकती है
लौ के दोनों किनारे
आसमान छूने को लपकते हैं।
बौराया हुआ एक कुत्ता
टीन की छत के नीचे आकर बैठ गया है
भौंकता है न जाने किस पर
लौ की अनिरंतरता पर
या हवा की साँय साँय पर
या भौंकने के सिवा कुछ कर नहीं सकता
तो अब बस भौंकता ही रहता है।
अँधेरे की इस यात्रा में
लौ के साथी चाँद-तारे आज नहीं आयेंगे
ये हवा से कहला भेजा है
सलाह भी दी है
कि लड़ते रहना
लड़ाई का कारण पता चलने तक
अगली लड़ाई में
इस लड़ाई में तुम्हारे योगदान के लिये
तुम्हारे ऊपर कवितायें लिखी जायेंगी।
ठिठुरती हुयी लौ
बढ़ती रही रात के पथ पर
जूझती रही स्वयं से
लड़ाई के औचित्य के सवालों पर
मंदिर के दीये की तरह
लालटेन की लौ की उपासना क्यों नहीं होती?