मुझे बूँदों का संगीत सुनना था

एक बेहद बेसुरा संगीत
जिसमें फड़फड़ाती हैं भुजायें बूँदों की
धरती की सतह पर
चोट कर आवाज़ निकालने से पहले
और भागती हैं
हवा की क़ैद से
जैसे हवा स्वयं भागती है बांसुरी की क़ैद से।

सुनना था वह संगीत
जिसे बूँदें बादलों से उठाकर
लहरों को सौंप देती हैं
जिसे समुद्र की गहराई में
सुरक्षित रखा जा सके
जिसे लहरें किनारे पर ला पटकती हैं,
जिसे सुनाया ही न गया हो
क्या उसे भी संगीत कहा जा सकता है?
दो खूँटियों से बंधे तांबे के तारों से
कहीं कम संगीत तो नहीं जमा है इन बूँदों में?

छप्पर से टपकती हुयी बूँदों का
दोहराव से रहित
बने नियमों से अलग
गिरना निरंतर जारी है
जैसे उँगलियाँ बरसती है पर सारंगी पर
और खो बैठती हैं सुरों की सारी समझ
मैं अगर बूँदों का संगीत समझने के काबिल भी होता
तो भी क्या मैं समझ पाता?


Leave a Reply