यक्ष ऊवाच -
धर्मराज!
इन पक्षियों को देखो
इनको देखकर
समझा नहीं जा सकता है
कि इनका अस्तित्व में होना
होना है या हो जाना है
पक्षियों ने भी कोई इशारा नहीं किया है
कि कुछ जाना जा सके;
प्रकृति की आकृतियों को देखो
तो कभी लगता है
कि वे हैं
फिर कभी लगता है
कि नहीं, वे हो गयी हैं,
जहाँ आदमी से कोई कहे
कि जो हो वो रहो
लेकिन आदमी क्या है
क्या आदमी यह जानता है?
होने और हो जाने की परिभाषा क्या है?
दोनों में से महत्वपूर्ण किसे कहा जा सकता है?
युधिष्ठिर ऊवाच -
चलायमान संसार में
स्वयं का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाना ही होना है
जहाँ अपने साथ संघर्ष नहीं होता है
और अपनी राह पर निश्चिन्त चलते रहना होता है,
और हो जाना है वह
जहाँ आदमी एक स्वयं से निकलकर
दूसरा स्वयं अपना लेता है
और छिपा देता है भूतकाल को वर्तमान में
और फिर से पा लेता है उत्साह जीने का;
पूर्ण रूप से इनमें से कोई भी अपना लेना
सत्य प्राप्त कर लेने जैसा है
और शायद दोनों राहें
कभी अदृश्य स्थान पर मिलें
और एक हो जायें
और मिटा दें होने और हो जाने के अंतर को,
तब तक दोनों में महत्वपूर्ण कौन है
यह ठीक से कहा नहीं जा सकता है।
धर्मराज!
इन पक्षियों को देखो
इनको देखकर
समझा नहीं जा सकता है
कि इनका अस्तित्व में होना
होना है या हो जाना है
पक्षियों ने भी कोई इशारा नहीं किया है
कि कुछ जाना जा सके;
प्रकृति की आकृतियों को देखो
तो कभी लगता है
कि वे हैं
फिर कभी लगता है
कि नहीं, वे हो गयी हैं,
जहाँ आदमी से कोई कहे
कि जो हो वो रहो
लेकिन आदमी क्या है
क्या आदमी यह जानता है?
होने और हो जाने की परिभाषा क्या है?
दोनों में से महत्वपूर्ण किसे कहा जा सकता है?
युधिष्ठिर ऊवाच -
चलायमान संसार में
स्वयं का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाना ही होना है
जहाँ अपने साथ संघर्ष नहीं होता है
और अपनी राह पर निश्चिन्त चलते रहना होता है,
और हो जाना है वह
जहाँ आदमी एक स्वयं से निकलकर
दूसरा स्वयं अपना लेता है
और छिपा देता है भूतकाल को वर्तमान में
और फिर से पा लेता है उत्साह जीने का;
पूर्ण रूप से इनमें से कोई भी अपना लेना
सत्य प्राप्त कर लेने जैसा है
और शायद दोनों राहें
कभी अदृश्य स्थान पर मिलें
और एक हो जायें
और मिटा दें होने और हो जाने के अंतर को,
तब तक दोनों में महत्वपूर्ण कौन है
यह ठीक से कहा नहीं जा सकता है।