मुझे याद है
सबकी आँखों का भाव-विभोर होना,
घुँघरुओं की गूँज
तुम्हारे पैरों का ताल में उठना-बैठना
और थाम लेना कई धड़कनें,
तुम्हें याद है
तुम्हारे पैरों का थककर जवाब दे देना।
मुझे याद है
तुम्हारी ख़ुशी, जो तुमने ओढ़ी हुई थी
और मिलने का अन्दाज़
क़ाबू किये हुये जज़्बात,
शाम का मिलना रात से
और रात का जुदा होना सुबह से,
तुम्हें याद है
सावन के वो सारे अकेले दिन।
मुझे याद है
लौ का उजाला
और ठिठकना रौशनी का
यूँ तुम्हारे चेहरे के ठीक सामने
सम्भलना समय की सीख से
और समाप्त हो जाना अंधेरे के सामने,
तुम्हें याद है
बाती आगे निकालते हुये
गरम तेल में हाथ जला लेना।
मुझे याद है
शोर का शांत होना,
तुम्हें याद है
जलकर राख हो जाना।