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Dec 7, 2017

बीते हुये भविष्य के किसी दिन

एक सुबह हमें बैठना है
बारिश में नीम के पेड़ के नीचे
और देखना है सूरज को रोककर रखे हुये बादलों को झूमते हुये
घोंसले से झाँकती हुयी एक गौरय्या को,
हमें उठना है और चल देना है
वहाँ जहाँ मिलते हैं धरती और आसमान
जहाँ टाँगा जाता है इंद्रधनुष
जहाँ से उठते हैं पक्षियों के झुण्ड।

एक दिन हमें बैठना है
किसी पहाड़ की ढलान पर
जहाँ बिछी हैं किसी पेड़ की
सींक जैसी पत्तियाँ,
और पिछली यात्रा के स्थान
खोजने हैं पहाड़ियों में
सोचना है कि कितनी राहें चली जा चुकी हैं
और कितनी बाक़ी हैं,
कितनी धारायें पार की जा चुकी हैं।

एक साँझ को सीपियाँ बटोरनी हैं
समुद्र के किनारे बैठकर
गिननी हैं लहरें
करना है विदा सूरज को
जैसे हम विदा करते हैं किसी प्रिय को
यह जानते हुये की अलगाव क्षणिक है
हमें मिलना ही है
और याद कर लेनी है
बीते हुये कल की दुनिया।

एक रात हमें देखना है
गिरते हुये एक पहाड़ी झरने को
जिसका दूधिया रंग चमकता है
रात के उजाले में
जैसे आसमान से उतरती हैं परियाँ,
हमें सुनना है झरने का गिरना
और व्यथित पानी का बेबस चले जाना,
कुरेदना है पानी की यादों को
और फिर छिप जाना है अपने बसेरे में।

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