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Dec 3, 2017

तत् त्वम असि

ब्रह्माण्ड के निर्माण में
जितने भी परमाणुओं का प्रयोग हुआ है
उतने में
कुछ और भी उतने ही आसानी से बनाया जा सकता था
उन्हीं परमाणुओं के एक बहुत छोटे से समूह से
बनी हुयी हैं सारी इकाइयाँ
समस्त ब्रह्माण्ड की तुम भी
बस एक छोटी-सी इकाई मात्र हो।

'Free Will' का अस्तित्व है भी क्या?
ये जाना जा चुका है
कि शरीर की समस्त क्रियायें
रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा नियंत्रित की जाती हैं
यानी जिस समय हमें लगता है
कि हम स्वतंत्र रूप से सोच-विचार कर सकते हैं
उस समय भी कुछ रासायनिक प्रक्रियायें
हमें ठीक वैसा ही सोचने के लिये प्रयासरत होती हैं,
यह असहज करने वाला ख़याल है।

व्याख्यायें बहुत हैं
जिसने ब्रह्म को जिस तरह से देखा
उसने उसकी उसी तरह से व्याख्या की
ब्रह्म सबकी व्याख्याओं से दूर रहा
व्याख्याओं से सत्य नहीं बदलता
सत्य नाम से परे है
लेकिन नाम दिये बिना
सत्य बताया नहीं जा सकता
क्या इसीलिये सत्य जाना नहीं जा सकता?
सत्य जानने के पहले
स्वयं सत्य की परिभाषा लिखनी पड़ेगी
उसके बाद ही किसी घटना को
'सत्य' के विशेषण से नवाज़ा जा सकेगा।

बिखरी हुयी हैं galaxies
पसरा हुआ है space
और फैला हुआ है time
जैसा हमें दिखता है संसार आज
वो परिवर्तन है
वरना विज्ञान मानता है
कि समय की शुरुआत में
सब एक था
उससे पहले के समय की कल्पना बेतुकी है।

विज्ञान यह भी मानता है
कि जीवन का एक ही स्रोत है
सभी जीवों का जीवन एक ही प्रक्रिया का परिणाम है
और उनमें अंतर
विभिन्न अवस्थाओं के परिणाम हैं
(वैसे तो और भी सिद्धांत हैं
लेकिन इसे लगभग मान ही लिया गया है)
और इस तरह से
जीवन की उत्पत्ति
एक अनियंत्रित, अनियमित घटना थी।

रेल की पटरियों की तरह
जीवन जाता है घने जंगलों में
और फिर से निकल आता है उसी तरह
जंगल के दूसरी तरफ़ से
बिना किसी बदलाव के;
जीवन की कोशिश यही है
कि स्थापित हो जाया जाये
और बदलाव सिर्फ़ बाहरी हों?

रात के दिये
जानते हैं अंधकार का स्थायित्व,
विशालतम तारों से निकलने वाला प्रकाश भी
अंतरिक्ष के अंधकार पर
विजय प्राप्त नहीं कर सकता
जब तक किसी पिण्ड से टकरा नहीं जाये,
मानी तब तक मानी नहीं हैं
जब तक कोई उनमें ख़ुद को खोज न ले,
स्वतंत्र रचना
स्वतंत्र रचनाकार
क्या मात्र भ्रम हैं?

सर्द दिन की किसी दोपहर
जब माहौल सुबह-सा होगा
तब सुनहरी धूप के लिये तरसते हुये
यह ख़याल आना चाहिये
कि सूरज निर्बाध गति से
काटता है चक्कर galaxy के केंद्र के चारों ओर,
वैसे ही चमकता है,
वैसे ही चलती हैं सौर आँधियाँ
ब्रह्म के अनुपात के आगे
ये मौसम, ये दिन-रात, सुबह-शाम
सब hyperlocalized घटनायें हैं।

समय चक्रीय है
रास्ते गोल-गोल घूमते हैं
सबसे बड़ी उपलब्धि यह है
कि जहाँ से शुरुआत हो
वहीं अंत के लिए वापस आ जाना
बिना क्षय के,
और यात्रा के बारे में सोचना;
प्रकृति में सबको
यह उपलब्धि हासिल नहीं है,
समय को भी नहीं, सूरज को भी नहीं।

एक सादे काग़ज़ पर
बनाते हैं कुछ आड़ी-तिरछी लकीरें
और फिर दे देते हैं उन्हें कुछ मानी
अलग-अलग लोगों के मानी भी
अलग हो सकते हैं;
क्या जीवन भी कुछ ऐसे ही नहीं है?
सबने जीवन को
अपने-अपने मानी दे दिये हैं
क्या सिर्फ़ तुलना करके जाना जा सकता है
कि कौन सा मानी सम्पूर्ण है?
क्या अपने दिये हुये मानी से
संतोष किया जा सकता है?

मनुष्य और प्रकृति में
तालमेल भी है, प्रतियोगिता भी,
किसको प्राथमिकता है
इस बात पर अभी तक
एकमत नहीं हो पाया गया है
मनुष्य भी तो एक तरह से प्रकृति का भाग है
तो क्या यह कहा जा सकता है
कि जो मनुष्य कर रहा है
वह प्रकृति कर रही है?

दी हुयी परिभाषा
और स्वयं खोजी गयी परिभाषा में
कौन उत्तम है
यह जानने का मापक क्या हो सकता है?
(हरमन हेस के सिद्धार्थ ने इनमें से दूसरा रास्ता चुना था)
जब तक परिभाषा खोज न ली जाये
क्या तब तक जीवन जीने का इंतज़ार किया जाये?

जीवन का यूँ तो कोई प्रत्यक्ष मानी नहीं है
और यह बात सालती रही है
मनुष्य जाति को युगों से,
धर्म, दर्शन, विज्ञान, बोली, भाषा,
कविता, त्योहार, बाज़ार, भोग,
ये सब जीवन को तर्कसंगत मानी देने की कोशिशों का ही परिणाम हैं
इतना सब होने के बाद भी
यह नहीं कहा जा सकता
कि जीवन को परिभाषित कर देना
पहले से आसान हो गया है।

और लगभग तभी से
प्रयास जारी है यह जानने के लिये भी
कि मनुष्य की ब्रह्माण्ड में स्थिति क्या है,
उपनिषद में कहा गया है
'तत्त्वमसि'
अर्थात 'तुम' 'वह' हो
और इसकी व्याख्यायें भी अनेक की गयी हैं :
आत्म ब्रह्म है, ब्रह्म आत्म है;
आत्म को जान लेना ही ब्रह्म को प्राप्त कर लेना है;
आत्म ब्रह्म की एक इकाई मात्र है;
आत्म ब्रह्म की एक अवस्था है;
इत्यादि,
पर उससे पहले यह जानना पड़ेगा
कि 'तत्' क्या है, 'त्वम' क्या है;
'अस्ति' के मायने क्या हैं?
physical presence या consciousness?

गौतम बुद्ध सिखाते थे स्वयं को त्याग देना
मतलब आत्म की उपस्थिति ही
सांसारिक दुखों का कारण है
इस तरह से
बुद्ध मानते थे
कि 'तत्' को 'त्वम' से जोड़ देने में
उस 'आत्म' के जीवन में
दुखों का प्रवेश हो जायेगा,
'तत्' के समक्ष 'मम' की उपस्थिति कैसी है
इस बात पर अभी विवाद है।

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